स्टॉक ट्रेडिंग में रिस्क और उनको मैनेज कैसे करें
स्टॉक ट्रेडिंग में रिस्क मैनेजमेंट एक टाइट रोप वॉक जैसा है, क्योंकि बेतहाशा प्राइस में उतार-चढ़ाव एक ट्रेड के खिलाफ जा सकता है जिसकी वजह से लॉसेस का रिस्क होता है। रिस्क मैनेजमेंट एक ट्रेडर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और जब नजरअंदाज किया जाता है तो इसके रिजल्ट में एक ट्रेडर का अकाउंट ब्लो भी हो साकता है। यह एक ऐसी प्रोसेस है जिसे लॉसेस को कंट्रोल में रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ट्रेड शुरू करने से पहले ही रिस्क पर सोच विचार करना ज़रूरी है, क्यूंकि रिटर्न रिस्क का मल्टीपल है । मार्केट का अपना मिजाज होता हैं और ये इर्रेगुलर हो सकते हैं इसलिए रिस्क को हटाया नहीं जा सकता है। रिस्क तब सामने आता है जब बेसिक या एसेट उम्मीद के खिलाफ चलती है। इस तरह के सिचुएशन से रिस्क को कम करने के लिए और बचाव के लिए रिस्क मैनेजमेंट का इस्तेमाल किआ जाता है।
ट्रेडिंग में रिस्क क्या है?
ट्रेड में रिस्क को इनवेस्टेड मनी को लूज़ करने की संभावना और प्रोबेबिलिटी के रूप में डिफाइन किया जा सकता है। अगर इन्वेस्टमेंट और एक्सपोज़र लीवरेज हो जाता है तो रिस्क और भी बढ़ जाता है। लीवरेज्ड अकाउंट एक दोधारी तलवार है। यह ना सिर्फ इन्वेस्टमेंट पर बेहतर रिटर्न दे सकता है बल्कि लॉसेस को भी बढ़ा सकता है। इसलिए, जितना ज़ायदा लीवरेज होगा, उतना ज़ायदा रिस्क होगा। एक छोटे से मार्जिन का पेमेंट कर, एक ट्रेडर को प्रॉफिट या लॉस के बड़े हिस्से का सामना करना पड़ता है। अगर कोई ट्रेडर निफ्टी 50 इंडेक्स में ट्रेड करना चाहता है, तो उसे निफ्टी के 50 शेयर्स के लॉट साइज के लिए 1.10 लाख रुपये के अपफ्रंट मार्जिन का पेमेंट करना होगा। अगर निफ्टी ऊपर जाता है, तो वह पूरे 1.1 लाख रुपये के इन्वेस्टमेंट पर प्रॉफिट कमाएगा, लेकिन वह इस पर लॉस भी करेगा। जबकि हर ट्रेड पर प्रॉफिट कमाना पॉसिबल नहीं है, लेकिन लॉस को कम करना ज़रूरी है। तो यहीं वह सिचुएशन है जहाँ पर रिस्क मैनेजमेंट काम आता है।
आप रिस्क को मैनेज कैसे कर सकते हैं?
रिस्क मैनेजमेंट के लिए कुछ ज़रूरी रुल्स या आवश्यकताएं हैं। यह ट्रेड करने से पहले ही शुरू हो जाता है। ट्रेड प्लानिंग, रिस्क-रिवॉर्ड को समझना, पोज़िशन ट्रेडिंग, परसेंटेज मेथड और स्टॉप लॉस सेटिंग
आइए इनमें से हर एक रुल्स को थोड़ा और डिटेल्स में समझें।
ट्रेड प्लानिंग - यह सबसे ज़रूरी कदम है क्योंकि ये आपके माइंड में क्लैरिटी लाता है कि अलग-अलग स्थितियों में क्या किया जाना चाहिए। एक प्लान में, आप कितना कैपिटल इन्वेस्ट करना चाहते है, वह समय जब आप ट्रेड में एंटर/एग्जिट करना चाहते हैं और आप कितना रिस्क लेने के लिए तैयार हैं शामिल होता है।
रिस्क रिवॉर्ड रेशियो फिक्स करना- रिस्क रिवार्ड रेश्यो उस रिस्क का नक्शा खींचता है जिसे आप रिवॉर्ड की उम्मीद के मुकाबले लेने के लिए तैयार हैं। रिस्क रिवार्ड अपफ्रंट को समझना ये स्पष्ट करता है कि मार्केट में एंट्री और एग्जिट अच्छी तरह से प्लांड हैं। ट्रेडर्स आम तौर पर अपनी रिस्क लेने की कैपेसिटी के बेसिस पर 1:2 या 1:3 के रिस्क रिवार्ड रेश्यो का इस्तेमाल करते हैं। रिस्क रिवार्ड फिक्स करने से आपको ओवरट्रेडिंग से बचने में मदद मिलेगी।
पोजीशन साइजिंग - यह रिस्क मैनेजमेंट में एक और महत्वपूर्ण कपोनेंट है। पोजीशन साइजिंग का मतलब सही रकम है जो एक ट्रेडर ट्रेड ओपन के लिए इस्तेमाल करने जा रहा है। रैंडम या बेतरतीब पोजीशन साइजिंग, इमोशन और गट फीलिंग में बहना घातक साबित हो सकता है। एक्सेसेसिव लॉस को रोकने के अलावा, पोजीशन साइजिंग प्रॉफिट मैक्सीमईजेशन में मदद करता है। एक छोटी पूंजी आपको कभी भी बड़ा रिटर्न नहीं देगा, इसलिए सही बैलेंस खोजना ज़रूरी है।
पोजीशन साइजिंग फिक्स्ड वैल्यू मेथड या परसेंटेज मेथड के ज़रिये किया जा सकता है।
फिक्स्ड वैल्यू मेथड में एक फिक्स्ड वैल्यू के साथ ट्रेड करना शामिल है। उदाहरण के लिए, अगर उपलब्ध कैपिटल 10 लाख रुपय है, तो आप हर एक ट्रेड के लिए ज़ायदा से ज़ायदा 1 लाख रुपय का वैल्यू अलॉट कर सकते हैं। इसका मतलब यह है कि आप एक ट्रेड में पूरे 10 लाख रुपये लगाने के बजाय दस अलग-अलग ट्रेड ले सकते हैं। इस प्रकार प्रति ट्रेड रिस्क रेस्ट्रिक्ट हो जाता है और भले ही पहले कुछ ट्रेड गलत हो जाएं, फिर भी आपके पास बाउंस बैक करने के लिए काफी कैपिटल उपलब्ध रहेगा है।
परसेंटेज मेथड रिस्क को लिमिट में रखने करने के लिए प्रति ट्रेड एक फिक्स्ड परसेंटेज का इस्तेमाल करता है। शुरू करने के लिए 2-4% का रिस्क एक अच्छा परसेंटेज हो सकता है। चूंकि यह परसेंटेज कैपिटल पर कॅल्क्युलेटेड है, कैपिटल में प्रॉफिट जुड़ते ही रिस्क की क्षमता बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, 1 लाख रुपये के कैपिटल पर 2-4% जोखिम 2,000-4,000 रुपये के बराबर होता है। अब मान लीजिए कि 1 लाख रुपये की कैपिटल में 10,000 रुपये का प्रॉफिट जोड़ा जाता है, तो कुल कैपिटल बढ़कर 1.1 लाख रुपये हो जाता है तो नया रिस्क अब 2,200-4,400 रुपये हो जाएगा।
स्टॉप लॉस सेट करना - यह मौजूदा पोजीशन के लॉसेस को लिमिटेड करेगा। मान लीजिए कि एक ट्रेडर ने निफ्टी फ्यूचर्स को 17,700 पर खरीदा है और स्टॉप लॉस ऑर्डर द्वारा अपने नुकसान को 17,600 पर लिमिट कर दिया है। जैसे ही निफ्टी 17,600 से नीचे आता है, ट्रेड अपने आप निकल जाता है। इसी तरह ट्रेलिंग स्टॉप लॉस का इस्तेमाल प्रॉफिट लॉक करने के लिए किया जाता है। ट्रेड से बाहर निकलने के लिए ट्रेडर्स आमतौर पर सापोर्ट और रेजिस्टेंस, एवरेज क्रॉस-ओवर, रिट्रेसमेंट आदि का इस्तेमाल करते हैं। स्कैलपर्स प्रॉफिट और लॉस दोनों ट्रेड से बाहर निकलने के लिए पाए या खोए हुए पॉइंट्स की संख्या का इस्तेमाल करते हैं।
निष्कर्ष
अगर आप दूसरे दिन के लिए ट्रेड करना चाहते हैं तो अपनी कैपिटल की रक्षा करना बहुत महत्वपूर्ण है। ट्रेडिंग रिस्क से भरा है और लीवरेज्ड ट्रेडिंग रिस्क से दोगुना है। इसलिए, ऊपर बताये गए बातों को ध्यान में रखते हुए ट्रेड की प्लांनिंग करना हमेशा अच्छा होता है। हैप्पी और सेफ ट्रेडिंग !