लॉन्ग कॉल ऑप्शन: इसे कब बनाना है, और याद रखने वाली ज़रूरी बातें
कई ट्रेडर्स के लिए एंट्री लेवल की स्ट्रेटेजी लॉन्ग कॉल स्ट्रेटेजी है। कहानियों को सुनकर जैसे कि एक दोस्त, या उसके दोस्त ने एक कॉल ऑप्शन खरीदा और फिर थोड़े समय में अपने पैसे को कई गुना बढ़ा दिया, जो एक कैश मार्केट ट्रेडर को ऑप्शन मार्केट में लाता है। ऑप्शंस खरीदकर लॉटरी टिकट जीतने की संभावना असल लॉटरी खरीदने की तुलना में, जायदातर रिटेल ट्रेडर्स को ऑप्शन बाइंग वाले मार्केट में लाता है।
यह देखने से पहले कि कोई कॉल ऑप्शन में ट्रेड कैसे कर सकता है, आइए बेसिक बातों से शुरू करें ।
कॉल ऑप्शन क्या है?
एक कॉल ऑप्शन बायर को अधिकार देता है, लेकिन ऑब्लिगेशन नहीं, एक निश्चित प्राइस पर एक अंडरलाइंग एसेट पर लंबे समय तक चलने के लिए, जिसे स्ट्राइक प्राइस कहा जाता है, एक्सपायरी डेट पर या उससे पहले। अगर अंडरलाइंग प्राइस बढ़ता है, तो कॉल कॉन्ट्रैक्ट का प्राइस भी बढ़ता है। इसके विपरीत, अगर यह नीचे जाता है, तो कॉल आप्शन का प्राइस घट जाता है।
राईट खरीदने के लिए, ऑप्शन का खरीदार कॉल कॉन्ट्रैक्ट के सेलर को प्रीमियम का भुगतान करता है। ऑप्शन का खरीदार किसी भी समय मार्केट में ऑप्शन बेचकर या इसके बेकार एक्सपायर होने पर अपना ट्रेड बंद कर सकता है।
हम पहले ही कॉल ऑप्शन की बुनियादी बातों को जान चुके हैं। यहाँ, हम यह बताना चाहेंगे कि कॉल ऑप्शन के खरीदार को ट्रेड में एंटर करने से पहले तीन महत्वपूर्ण पॉइंट्स को ध्यान में रखना चाहिए।
पहला स्ट्राइक प्राइस है, जो प्री-डेटर्मिन्ड प्राइस है जिस पर अंडरलाइंग एसेट का एक्सचेंज किया जाएगा।
दूसरा एक्सपायरी डेट, या वह तारीख है जिस पर कॉन्ट्रैक्ट का सेटलमेंट किया जाता है या बेकार ही एक्सपायर हो जाता है।
फाइनली, ऑप्शन खरीदने के लिए भुगतान किए गए प्रीमियम को कंसीडर करना होगा
कॉल ऑप्शन का पे-ऑफ डायग्राम
निफ्टी 17,825 पर ट्रेड कर रहा है और 25 अगस्त 2022 की एक्सपायरी के लिए 18,000 कॉल खरीदकर लॉन्ग कॉल ट्रेड किया जाता है।
चूंकि मार्केट 17,825 पर कारोबार कर रहा है, इसलिए 18,000 कॉल एक आउट-ऑफ-द-मनी (ओटीएम) ऑप्शन है।
पोजीशन बनाने के लिए भुगतान किया गया प्रीमियम 90 रुपये था और पोजीशन होल्ड करने का प्राइस 4,500 रुपये है। पोजीशन बनाने में ट्रेडर को अधिकतम नुकसान 4,500 रुपये है।
जब मार्केट उसके ऑप्शन के स्ट्राइक को पार कर जाता है और कॉल ऑप्शन खरीदने की लागत को पार कर जाता है, तो ट्रेडर ब्रेक इवन हासिल कर लेगा। ब्रेक इवन = 18,000 + 90 = 18,090
लॉन्ग कॉल पोजीशन कब बनाएं
एक ट्रेडर जब अंडरलाइंग में बुलिश बेहेवियर की उम्मीद करता है तो लॉन्ग कॉल ट्रेड बनाता है।
मार्केट में आम तौर से ये समझा जाता है कि ऑप्शन खरीदने वालों की तुलना में ऑप्शन बेचने वाले ज्यादा पैसा कमाते हैं। यह सही और गलत दोनों तरह का बयान है।
दरअसल, यह सच है कि ऑप्शन बेचने वाले अक्सर अपने ट्रेड में सही होते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि भले ही मार्केट उनके कॉल की दिशा में आगे नहीं बढ़े ,फिर भी यह उनके लिए लाभदायक होगा क्योंकि एकऑप्शन की विशेषता समय के साथ अपना वैल्यू खो देता है।
यह उन स्थितियों को रेस्ट्रिक्ट करता है जिनके तहत लॉन्ग कॉल ऑप्शन ट्रेड क्रिएट किये जा सकता हैं।
ट्रेडर लॉन्ग कॉल ट्रेड तब खोल सकते हैं जब वे अंडरलाइंग में तेज बदलाव की उम्मीद कर रहे हों। यह भी एक वजह है कि जायदातर ट्रेडर्स इंट्रा-डे के आधार पर लॉन्ग कॉल ट्रेड करते हैं या जिसे बाय टुडे सेल टुमारो, (बीटीएसटी) ट्रेड कहा जाता है। थोड़े समय के लिए मार्केट के सामने आने से ऑप्शन के बर्बाद होने की संभावना कम हो जाती है।
लॉन्ग कॉल स्ट्रैटेजी उन स्कैल्पर्स और मोमेंटम ट्रेडर्स द्वारा पसंद की जाती है जो कम समय के लिए मार्केट में हैं।
पेशेवर ट्रेडर लॉन्ग कॉल ट्रेड करना पसंद करते हैं जब वोलैटिलिटी बहुत कम होता है। जब इम्प्लाइड वोलैटिलिटी पर्सेंटाइल (आईवीपी) या इंप्लाइड वोलैटिलिटी रैंक (आईवीआर) बहुत कम होता है, तो वे लॉन्ग कॉल ट्रेडिंग पोजीशन बनाते हैं।
कौन सा कॉल ऑप्शन खरीदना है
किसी भी कॉल ऑप्शन स्ट्राइक में पोजिशन लेकर लॉन्ग कॉल स्ट्रैटेजी बनाई जा सकती है। कई रिटेल ट्रेडर्स डीप ओटीएम कॉल खरीदने की गलती करते हैं क्योंकि यह सस्ता है। हालांकि, इस कॉल में ट्रेडर को पैसा बनाने के लिए, ट्रेड को प्रॉफिटेबल बनने से पहले मार्केट को तेजी से लंबी दूरी के लिए आगे बढ़ना होगा।
लॉन्ग कॉल ट्रेड को प्रॉफिटेबल बनाने के लिए स्ट्राइक का चयन एक महत्वपूर्ण फैक्टर है।
अगर ट्रेडर किसी सरप्राइज की उम्मीद कर रहा है, तभी डीप ओटीएम स्ट्राइक में पोजीशन लेने का मतलब है, नहीं तो एट-द-मनी (एटीएम), या थोड़ा सा इन-द-मनी (आईटीएम) या थोड़ा सा ओटीएम स्ट्राइक, पोजीशन बनाने के लिए काफी अच्छी है।
कॉल ऑप्शन स्ट्राइक प्राइस का चयन करने के लिए फैक्टर्स
अंडरलाइंग प्राइस में बदलाव का असर
एक लॉन्ग कॉल ट्रेड को थेओरेटिकल्ल्य रूप से अंडरलाइंग के साथ साथ चलना होता है। हालाँकि, ऐसा कभी नहीं होता है। अंडरलाइंग और कॉल ऑप्शन के बीच का संबंध काफी हद तक डेल्टा कहे जाने वाले ऑप्शन ग्रीक के वैल्यू पर निर्भर करता है। इस तरह ,अगर किसी ऑप्शन में 0.20 का डेल्टा है, तो अंडरलाइंग के हर 100 पॉइंट्स की चाल के लिए, ऑप्शन 20 पॉइंट्स से आगे बढ़ेगा।
दूरी के आधार पर ट्रेडर मार्केट के बढ़ने की उम्मीद करता है, वह ऑप्शन स्ट्राइक प्राइस का चयन कर सकता है और सबसे अच्छा रिटर्न देने वाले को चुन सकता है।
वोलैटिलिटी का असर
जब ऑप्शन खरीदने की बात आती है, तो वोलैटिलिटी एक दोस्त है। वोलैटिलिटी में वृद्धि से ऑप्शन की प्राइस में वृद्धि होगी। जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, ट्रेडर एक लॉन्ग कॉल ट्रेड में एंटर करना पसंद करता हैं जब वो देखता हैं कि वोलैटिलिटी एक साल में अपने लोएस्ट पॉइंट के करीब है।
वक़्त का असर
वक़्त ऑप्शन खरीदार का दुश्मन है। समय के साथ ऑप्शन की वैल्यू घटती जाती है। इस तरह, एक लॉन्ग कॉल ऑप्शन ट्रेड तब लिया जा सकता है जब ट्रेडर कीमतों में तेज उछाल की उम्मीद करता है। लॉन्ग कॉल ट्रेड नुकसान में ख़त्म हो सकता है भले ही दिशा सही हो लेकिन अगर एक्सपायरी के समय तक ब्रेक इवन पॉइंट को पार करने में विफल रहा हो।
स्टॉक प्राइस में बदलाव का असर
कॉल की कीमतें, आम तौर पर, अंडरलाइंग स्टॉक की कीमत में बदलाव के साथ रुपये-से-रुपये में बदलाव नहीं करता हैं। बल्कि, उनके "डेल्टा" के आधार पर कीमतों में बदलाव की मांग करता है। एटीएम कॉल में आमतौर पर लगभग 50% का डेल्टा होता है। इसलिए, स्टॉक की कीमत में 1 रुपये की वृद्धि या गिरावट के वजह से एट-द-मनी कॉल में 0.50 पैसे की वृद्धि या गिरावट होती है। आईटीएम कॉल में डेल्टा 50% से अधिक होता है, लेकिन 100% से अधिक नहीं । ओटीएम कॉल में डेल्टा 50% से कम होता है, लेकिन शून्य से कम नहीं।
वोलैटिलिटी में बदलाव का असर
वोलैटिलिटी इस बात का माप है कि परसेंटेज के संदर्भ में शेयर की कीमत में कितना उतार-चढ़ाव होता है। वोलैटिलिटी ऑप्शन की कीमतों में एक फैक्टर है। जैसे ही वोलैटिलिटी बढ़ती है, ऑप्शन की कीमतों में वृद्धि होती है अगर स्टॉक की कीमत और एक्सपायरी टाइम जैसे अन्य फैक्टर कांस्टेंट रहते हैं। नतीजतन, लॉन्ग कॉल की पोजीशन को बढ़ती वोलैटिलिटी से लाभ होता है और घटती वोलैटिलिटी से नुकसान पहुँचता है।
वक़्त का असर
एक ऑप्शन का टोटल प्राइस का टाइम वैल्यू पोरशन घटता है जैसे ही उसके एक्सपायरी करीब आता है। इसे टाइम इरोज़न के रूप में जाना जाता है। अगर अन्य फैक्टर स्थिर रहते हैं तो लॉन्ग कॉलें समय बीतने से प्रभावित होती हैं।
याद रखने वाली बातें
- एक कॉलआप्शन बायर को अधिकार देता है, लेकिन ऑब्लिगेशन नहीं, एक निश्चित प्राइस पर एक अंडरलाइंग एसेट पर लंबे समय तक चलने के लिए, जिसे स्ट्राइक प्राइस कहा जाता है, एक्सपायरी डेट पर या उससे पहले। अगर अंडरलाइंग प्राइस बढ़ता है, तो कॉल कॉन्ट्रैक्ट का प्राइस भी बढ़ता है। इसके विपरीत, अगर यह नीचे जाता है, तो कॉल आप्शन की प्राइस घट जाती है।
- एक ट्रेडर जब अंडरलाइंग में बुलिश बेहेवियर की उम्मीद करता है तो लॉन्ग कॉल ट्रेड बनाता है।
- जब ऑप्शन खरीदने की बात आती है, तो वोलैटिलिटी एक दोस्त है। वोलैटिलिटी में वृद्धि से ऑप्शन की प्राइस में वृद्धि होगी।